Sunday, 23 October 2016

आवाज़


कैसी आवाज़ है ये….
कुछ दोस्त हैं चाय की चुस्कियां लेते हुए
दूर हैं सब अपने घर से
बनने आये हैं कुछ यहां
कैसी आवाज़ है ये
कुछ लोग हैं इधर उधर गुज़र रहे
न मंज़िल पता न ठिकाने का
बस चल रहे और चल रहे
कैसी आवाज़ है ये
ये मेरी आवाज़ है
कुछ कह रही है ये
अकेली हूँ यहां
तलाश है किसी की
भीड़ में हूँ पर अकेली हूँ
बहुत लोग हैं पर अकेली हूँ
बस है तो एक आवाज़ है ये
बस सब तरफ ऐसी ही
कुछ जानी कुछ अनजानी
आवाज़ है ये।
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